Friday, September 2, 2011

अरुंधती, अन्ना का आन्दोलन और पीछे की शक्तियां


(आज अरुंधती राय का एक इंटरव्यू पढ़ा. काफी रोचक लगा. हालाँकि पूरा इंटर व्यू पढ़कर अरुंधती के बारे मे भी कई सवाल पूछने को जी करता है. अरुंधती आखिर अन्ना का इतना विरोध कर क्यों रही हैं ? क्या उनका विरोध कहीं फिर से अपने आप को मीडिया और लोंगों के बीच स्थापित करना तो नहीं जिसे वो पिछले कुछ दिनों मे खो चुकी हैं.? या वो देश को आगाह कर रही हैं ? आखिर अरुंधती की मंशा क्या है ? चाहे जो भी हो अरुंधती ने जो कुछ भी अपने साक्षत्कार मे कहा है वो सोचने वाला विषय है. यह आलेख इसी को ध्यान मे रख कर लिखा गया है)
१२ दिनों तक अन्ना की भूख हड़ताल चली सारा देश उनके साथ था. मीडिया ने उनके आन्दोलन को देश का आन्दोलन कहा और अन्ना को नया गाँधी. कोलकता मे युवाओं ने नारे भी लगाये " अन्ना नहीं ये आंधी है देश का नया गाँधी है " यक़ीनन अन्ना देश मे एक नए विश्वास की तरह उभरे हैं और लोंगों ने उन्हें सर आँखों पर लिया है . उनकी टोपी और उनके शब्द एक नए हथियार की तरह सामने आये हैं . दूसरी ऑर इस आन्दोलन का कुछ लोंगों द्वारा पुरजोर विरोध भी किया गया. कहा गया कि यह आन्दोलन एक माध्यम वर्गीय और सवर्ण आन्दोलन है. इसे शहरी आन्दोलन भी करार दिया गया. कई लोंगों ने विशेषकर पढ़े लिखे पिछड़े और दलित वर्ग के पत्रकारों और चिंतकों ने इसे दलित, शूद्र और आदिवासी विरोधी बताया.. तमाम सोशल नेट्वोर्किंग साइट्स पर अन्ना विरोधियों और समर्थको की भरमार रही. पूरे आन्दोलन के दौरान इन साइट्स पर खूब गरमा गर्मी भी हुई. जैसे जैसे आन्दोलन बढ़ा कई लोंगों ने फेसबुक
पर ऐलान भी किया के अब वो अपने दोस्तों की नयी लिस्ट बनायेंगे. विचारधारा का ऐसा टकराव हुआ के कईयों ने कई दोस्तों को ब्लाक कर दिया. . कई तरह के तर्क और वितर्क हुए कई तरह के विचार पढ़ने को मिले. कई अपनी जगह सही थे तो कई बड़े - बड़े सवाल करते हुए भी थे. कई तर्क निरर्थक भी थे जो महज़ विरोध के लिए विरोध था या यूं कहें कि इस मनोभाव से विरोध था के विरोध करना बौद्धिक लोंगों की जामात मे खड़ा होना है क्योंकि वो भगवा के साये से दूर रहना चाहते थे. ऐसा कहा गया के अन्ना के आन्दोलन पर RSS के आशीर्वाद का भी साया है .

इन्हीं विरोधों के बीच देश की विख्यात एक्टिविस्ट अरुंधती राय का साक्षात्कार I B N 7 की सागरिका घोष ने लिया जिसमे अरुंधती राय ने न केवल जनलोकपाल बिल अपितु अन्ना के आन्दोलन और उसके पीछे की शक्तियों और उनकी मंशा पर गंभीर चिंता जताई. अरुंधती ने कहा: "अन्ना हजारे को भले ही जन साधारण के संत के रूप मे पेश किया गया हो किन्तु वो इस आन्दोलन को संचालित नहीं कर रहे थे मतलब इस आन्दोलन का दिमाग वो नहीं थे.". इसी साक्षात्कार मे आगे अरुंधती कहती है कि इस आन्दोलन को संचालित करने वाली शक्तिया अलग थी. मूलरूप से यह फोर्ड फाउन्देशन और वर्ल्ड बैंक से जुदा कार्यक्रम है जो अफ्रीकी देशों मे ऐसे ६०० आन्दोलन चला रहा है."

अचानक अरुंधती का परिदृश्य मे आना और अन्ना के आन्दोलन पर ढेरों सवाल खड़े करना और मीडिया के एक ग्रुप को अरुंधती को तव्वजो देना भी सोचने को मजबूर करता है. बहरहाल, यहाँ सवाल यह है के अरुंधती द्वारा अन्ना के आन्दोलन को प्रतिगामी कहना और उसपर सवाल खड़े करने के पीछे कारण क्या हो सकता है ? क्या ऐसे सवाल उठाने के पीछे कोई राजनीति है जो विरोध करने वालों की तरफ से हुई या फिर ये मीडिया का TRP का चक्कर है ? सोचने वाली बात ये भी है की अरुंधती की चिंता क्या सचमुच सही हैं? या बात कुछ और ही है ?

यहाँ सबसे पहले बात अरुंधती की करते हैं. सन १९६१ मे जन्मी अरुंधती राय पेशे से लेखिका हैं और अब तक उन्होंने नर्मदा बचाओ से लेकर नक्सल वाद तक तमाम मुद्दों पर काम किया है. किसी ने कभी उनके काम और उस काम के पीछे की मंशा या पीछे की शक्तियों पर सवाल नहीं उठाये थे. न ही ये जानने की कोशिश की थी के उनके काम को कौन फंड कर रहा था आज तक सभी ने उनकी बात को न केवल तवज्जो दी बल्कि कई बार भरपूर समर्थन भी किया. उनका पूरजोर विरोध तब हुआ जब नक्सल वादियों की समस्या को संवेदनशीलता से लोंगों के सामने रखते रखते वो कश्मीरी अलगाववाद के समर्थन मे उठ खड़ी हुईं तो लोग उनपर और देश के प्रति उनकी निष्ठां पर सवाल करने लगे और वो एक तरह से लोंगों की नज़र से उतर गयीं ऐसे मे जब अरुंधती अन्ना के आन्दोलन का विरोध करती है तो सीधा साधा सवाल उठता है के वो जिन आन्दोलनों के साथ जुडी रहीं उनकी पीछे की शक्तियां क्या अन्ना के आन्दोलन के पीछे की शक्तियों की विरोधी शक्तियां हैं? यदि नहीं तो फिर अन्ना और उनके सहयोगियों और उनके फंडरों से कैसी शिकयत ? और अगर ये शिकायत है तो ये समझा जाये के ये अरुंधती का विरोध नहीं बल्कि विश्व स्तर पर उन दो फंडरों के बीच की लड़ाई है जो दोनों अलग अलग आन्दोलनों को फंड कर रहे थे. जाहिर है अगर ऐसा है तो अरुंधती के बात के पीछे भी कोई और ही है. ऐसे सवाल बड़े जायज़ है क्योंकि अरुंधती भी बुकर से सम्मानित हैं और ओक्सफाम और बीबीसी जैसी एजेंसियों से जुडी रही हैं.
(एक्तिविसम का खेल भी इस देश मे बड़ा मजेदार है अभी कुछ दिन पहले ग्रीन पीस संस्था ने एक विज्ञापन दिया था - क्या आप एक्टिविस्ट बनाना चाहते है ? यदि हां तो अपनी CV ......................... भेजें. तो क्या एक्टिविस्ट बनाने का काम भी ऐसी ही एजेंसियां कr रही हैं ? तो फिर बात एक बार फ़िर सोचने वाली है के इस सरे खेल मे जनता कहाँ है? क्या वो सिर्फ मोहरा है ?)

फोर्ड फाउनडेशन का गठन फोर्ड कार के मालिक Edsel Ford द्वारा १९३६ मे अमेरिका के मिशिगन प्रान्त मे किया गया. अपने शुरूआती दौर मे यह संस्था अमेरिका मे ही काम करती रही किन्तु १९५२ में संस्था ने अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय आफिस दिल्ली ने खोला और १९७६ मे बंगलादेश मे ग्रामीण बैंक की स्थापना की.
दूसरी महत्वपूर्ण संस्था है ओक्सफाम जिसकी जड़ें भारत मे बहुत मजबूत हैं . ओक्सफाम ने महिलाओं के विकास, गरीबी उन्मूलन तथा अनेक विषयों पर काम किया है. इन दोनों ही संस्थाओं की पैठ भारत के शिक्षित जगत मे बहुत अच्छी है.

उपरोक्त शक्तियों के आलावा सरकार को भी तमाम कामो के लिए विदेशी फंड मिलते हैं. जिसमे US Aid , DFID , UN , नीदरलैंड सरकार, ब्रिटिश हाई commission जैसी तमाम एजेंसियां अलग अलग कामों के लिए भारत सरकार को फंड देती है. ऐसे मे जाहिर है सरकार के फंडर, अरुंधती द्वारा समर्थन किये जा रहे आन्दोलनों के फंडर और अन्ना के आन्दोलन का समर्थन कर रहे आन्दोलन के फंडर तीन अलग अलग शक्तियां हैं जो वैश्विक स्तर पर अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रही हैं.मज़े की बात ये है के तमाम आन्दोलनों को फंड कर रही एजेंसियों को बड़े पैमाने पर कर्पोरत जगत से पैसे मिलते हैं जो सरकार को नियंत्रण करने की फ़िराक मे लगे रहते हैं.

सच कहा जाये तो ये एक बहुत ही गंभीर चिंता का विषय है देश के लिए.जिसपर देश की सरकार अगर नहीं सोचती तो देश के लोंगों को सोचने की आवश्यकता है. देखा जाये तो जनता देश की धुरि होती है सारी संस्थाएं व्यवस्थाएं जनता के लिए और जनता के द्वारा बनाई गयी होती हैं. इसपर न केवल जनता का हक़ होता है बल्कि यह उनकी ही होती हैं फिर क्या होता है जो बाहरी शक्तियां इन संश्थाओं को चलने की साजिश रचने लगती हैं ? फिर क्या होता है जो अलग अलग देशों मे ६०० आन्दोलन चलने को लालायित रहती हैं (जैसा की अरुंधती बताती हैं ) जाहिर है उनका कोई बड़ा हित जरूर है. इस बात को थोडा बारीकी से समझाना होगा.


. यह वास्तव मे गौर करने लायक बात है के देश मे आज जितने भी जाने पहचाने चेहरे खड़े हुए हैं चाहे वो अरुंधती रॉय हो, मेधा पाटकर हों, अरविन्द केज़रिवल हों, राजेब्द्र सिंह हों या फिर इस आन्दोलन के बाद के अन्ना हजारे सबके पीछे कहीं न कहीं आपस मे लड़ती ये एजेंसियां ही हैं जो भारत मे अपनी अपनी सरकारों की नीतियों के मद्दे नज़र काम कर रही हैं. ऐसे मे अन्ना का आ न्दोलन बिलकुल सही और स्वाभाविक लगते हुए भी कहीं न कहीं इन देशों की छिपी मंशा का शिकार जरूर हुआ है.

मतलब ये भी की देश की आज़ादी के बाद नए तरीके से देश मे अपनी पैठ बनाने का काम कई देशों ने इन संस्थाओं के माध्यम से हमारी गरीबी, अशिक्षा और बेकारी को हथियार बनाकर करना शुरू क़र दिया. सिविल राईटस इसका अगला चरण था. किन्तु इन सबके बीच बड़ी बात ये हैं के अन्ना के चरित्र और उनके अब तक के सभी कामो की सराहना और आलोचना की जा सकती है पर उनकी मंशा पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता.

अंत मे, अगर अरुंधती अन्ना के आन्दोलन के पीछे की शक्तियों के विषय को गंम्भीरता से उठा सकती हैं और सवाल खड़े कर सकती हैं तो दूसरी तरफ अरुंधती को भी यह बताना होगा के जब वो कश्मीरी सेप्रतिस्म को सपोर्ट करती हैं तो उसके पीछे किन शक्तियों का हाथ होता है ?

........................डॉ. अलका सिंह

1 comment:

raghvendra awasthi said...

सत्य कहा है आपने....और आपके प्रश्न अनुत्तरित नहीं रहने चाहिए....|मेरा कंसर्न नीयत से है....अन्ना की नीयत और अरुंधती की नीयत समानांतर नहीं ........किसकी सही ...किसकी गलत ...आपका और हमारा विवेक तय करेगा

लेकिन मुझे लगता है कि अरुंधती अपनी पिछली गलती को सुधारने के चक्कर में एक गलती और कर रही हैं.....ये बुद्धिजीवी होना भी ड्रग एडिक्ट होने कि तरह है .....खुजली होने लगती है........होगी (मैं पूरी तरह श्योर तो नहीं हूँ....)या फिर अजीब से साये चलते दिखाई पड़ने लगते होंगे......पुरस्कार अक्सर भ्रम पैदा करते हैं......हो गया होगा......छ्म्य भी है....होना भी चाहिए.....एक मौका अरुंधती को भी दो ......देखें तो उनकी योजना क्या है....?

सवाल फिर नीयत का है......हमें अच्छी नीयत वाले बुद्धिजीवी चाहिए......नेता चाहिए और नागरिक भी....अगर नीयत पर ही सवाल है...तो फिर...फर्क क्या.....?

राघवेन्द्र अवस्थी ९३१११७३३५५